मैंने पूछा कौन है वो-
कह गया कोई अपना सा है|
यादों की धूंध में ओझल,
भूला हुआ कोई सपना सा है|
ख्वाबों में उड़ता है जो,
स्वपनलोक के आकाश में,
जो बसा है मेरी रूह में,
मेरे मन में, मेरे एहसास में|
जो अब करता है अटखेलियाँ,
मेरे हृदय में, मेरे विश्वास में|
अनायास ही कभी उभर आया था,
मेरे जीवन की हर श्वास में|
एक कवि के ह्रदय से निकला,
वो बस एक कल्पना सा है|
मैंने पुछा कौन है वो-
कह गया कोई अपना सा है|
याद, जो पास होकर भी पास नहीं,
कुछ पल जो बचे अब खास नहीं,
मेरे हृदय से उमड़ी एक आँधी,
जिसपर खुदा को था विश्वास नहीं,
या मेरे प्यार की इन्तहाई का ,
हुआ कभी उसे एहसास नहीं|
हर रात विरह दर्द में जागता,
खुद में कल्पित एक सपना सा है|
मैंने पूछा कौन है वो-
कह गया कोई अपना सा है|
जीवन के पतझड़ में, वो खुशियों की बहार है,
दुःख की मरुभूमि पर, वो ठण्ड की फुहार है,
मेरे ख्वाबों के समुद्र में, वो गूंजने वाली मल्हार है,
मेरी इस वीरानी दुनिया का, वो इकलौता उपहार है,
एक पवित्र आयत पर लिखी, मेरी जिंदगी का सार है|
उसे शायद अब ख्याल नहीं मेरा, पर
मुझे उसकी तमन्ना हर बार है|
जिसकी शीत विरह में, मुझे बस कंपना सा है|
मैंने पुछा कौन है वो-
कह गया कोई अपना सा है|