उठो देश के वीर सपूतों, उठो प्रचंड हुंकार भरो,
मानवता की रक्षा हेतु,अब आलस का तिरस्कार करो|
उठो वीर संकल्प लो, अब हर अन्याय मिटाना है,
ग्रहण लगे उस सूर्य को, उसका शौर्य लौटना है|
उठो वीर नकुल बनो, हर शकुनी को मिटाने को,
उठो वीर राम बनो, रामराज्य वापस लाने को|
भ्रष्टाचार के इन कीड़ो को उनकी जगह बताने को,
उठो, बढ़ो, निर्भय लड़ो, माटी की महिमा लौटने को|
इस माटी ने कई वीरो को अपनी कोख में खिलाया है,
और असंख्य दुराचारियों को अपने आगोश में सुलाया है|
यहाँ के नल-नील के समक्ष पूरा सागर पड़ा बौना था,
यह धरती है उस महावीर की, जिसके लिए सूर्य भी एक खिलौना था|
यह धरती है उस छाती की, जिसने वज्रपात को झेला है,
यह धरती है उस पुरु की, विश्व विजेता को जिसने धकेला है|
यह धरती है उस पृथ्वी की, बिन चक्षु जिसने शत्रु पर वार किया,
यह धरती है उन अवतारों की, जिसने असुरों का संहार किया|
हिमगिरी की विशालता लांघने, वो कदम हमारे ही चले थे,
एवरेस्ट को शर्मसार करने, प्रथम पग हमारे की बढे थे|
एक मुठ्ठी नमक से जब, हमने पूरी सत्ता हिलाई थी,
निर्दोषों की एक चीख पर, जब पूरी फ़ौज घबराई थी|
इसकी कोख के सपूतों ने, काल पे भी प्रहार किया है,
यही के जन्मे किसी परशु ने, तेरह बार संहार किया है|
भुज-बल की क्या बात करूँ मैं, अब क्या कहना बाकी है,
अथाह विशाल पर्वत के लिए तो हमारी कनिष्ठा ही काफी है|
यही के नारायण के तप पर, पूरा देवलोक हारा था,
भागीरथ के मानस बल ने, गंगा को धरती पर उतारा था|
चीर सीना समुद्र का हम अमृत ढूंढ कर लाए थे,
भरत,अर्जुन और कर्ण हम ही कभी कहलाये थे|
आज जरूरत है खुद में उसी पौरुष को जगाने की,
भ्रष्टाचार, कुनीति और आतंक, सबको जड़ से मिटाने की|
उठो, बढ़ो और नेतृत्व करो, दबे कुचलों की टोली को,
खुशहाली, प्रेम और नवउमंग से भर दो माँ की झोली को|
करो कुछ ऐसे कार्य कि,ये जग तुम्हारे गुण गाये,
और तुम्हारी उपस्थिति मात्र से, हर प्राणी हरसाए|
रचो इतिहास पुनः ताकि, सिंधु फिर तुम्हारा गुणगान करे,
वीरों कि इस धरती को, हिमालय भी झुक कर सलाम करे|