Friday, October 23, 2009

व्यथा....................


कहते हैं कि सफलता पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है| पर इस सच के पीछे एक सच और छुपा हुआ है,जो शायद महसूस सबने किया पर कहा किसी ने नहीं| वो सच ये है कि कुछ चीजें इन्सान से सफलता मिलने के बाद छुट जाती हैं| इस देश के अट्ठाईस राज्यों में से एक राज्य के लाखो कस्बों में से एक कस्बे के उन अनगिनत लोगो के बीच में शायद मेरी पहचान कम पर जाये, पर मैं.....मैं तो खुद में ही अकेला,सिर्फ अकेला था| अपने जीवन के हर पड़ाव से गुजरते हुए अपने सपनों को पूरा करने कि जिद्द लिए हुए मैं कब कितना आगे निकल गया शायद आज तक मुझे इसका आभास तक नहीं| इस सफ़र में कई ऐसी चीजें और कई ऐसे वृतांत आये जिनका जिक्र करना यहाँ पर संभव नहीं है, या फिर यूँ कहिये वो सब मेरी निजता से सम्बंधित है|पर फिर भी उन् सबने मेरे ऊपर गहरी छाप छोड़ी| अपनी मेहनत,और अपनों का सहारा इन्ही दोनों को अपनी बैसाखी बना कर चलने वाले मेरे नन्हे कदम अचानक इतने बड़े हो गए कि उनकी आहट मेरे सपनों कि दुनिया तक पहुँच गयी| शैक्षणिक रूप से पिछडे हुए एक परिवार से सम्बन्ध रखने के बावजूद मैंने खुद को यहाँ तक पहुँचाया,इसके पीछे मेरी आकांक्षाएं ही थी, जिन्हें मैं पूरा करना चाहता था|पर अब जब मुझे वो सब मिला तो भी मैं खुश नहीं हूँ,....क्यों?अब क्यों लगता है कि शायद मैंने कुछ खो दिया|.........शायद यही मेरे लिए सफलता की कीमत है|

पर मेरी उदासी का कारण मात्र इतनी सी बात नहीं है| बात मेरे खुद के एहसास की है|एक मेंढक काफी कोशिश कर कुँए से निकल आया|सबकी नज़र में वो निहायत ही मेहनती और सफल प्राणी है| पर उसे क्या मिला? इस सफलता की कीमत उसने क्या दी?वो अपनों को तो वही छोड़ आया| इस सफलता के लिए उसे उनसे दूर रहना पड़ा|एक ऐसी दुनिया में आना पड़ा जहाँ उसका अपना कोई नहीं है|जहाँ उस जैसा शायद ही कोई हो और अगर कोई होगा भी तो तो बताएगा नहीं क्योंकि वो भी उसी भावना से ग्रसित पड़ा है| फिर उस कुँए से
निकलने का क्या फायदा मिला?इसके बावजूद वो साहस करके आगे बढ़ता है,सफलता के इस महल में छुपी प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ता है और फिर हारकर एक दिन मेरी तरह निराश हो जाता है| क्योंकि जिस सफलता की दुनिया में वो आ चुका है,वहां के हिसाब से उसका कद छोटा,रंग मटमैला और चल धीमी है| क्योंकि ये दुनिया उसके तरह के मेढको की नहीं बल्कि रेस में भागने वाले घोड़ों की है,क्योकि यह रेस का वो प्रतियोगी है जो हमेशा पीछे छूट जाता है|पर इसमे उसकी क्या गलती है,अगर वो थोडा सा सांवला,थोड़ा सा छोटा और थोड़ी कम गति वाला है|ये तो उसके वश में नहीं था| उसके वश में तो उसके हृदय में बसने वाली वो भावनाएं हैं,जिन्हें लेकर ही वो हर बरसात में अपनी पूरी आवाज़ में(भले ही वो आवाज़ भी इस दुनिया के लिए काफी धीमी हो)लोगो को आने वाली बरसात की खुशी देकर खुश हो जाता है|पर गति के पीछे भागने वाली इस दुनिया को ये भावना ना कभी दिखी है,ना कभी दिखेगी| अंततः वो मेंढक जो कभी अपने कुँए में नामी था,इस दूसरी दुनिया में गुमनाम रह जाता है,उस शांत हवा की तरह जिसके होने का एहसास भी किसी को नहीं होता|
कहते हैं की जिंदगी में उतार-चढाव आतें रहते हैं,पर मेरी जिंदगी के एक चढाव ने मुझे अनायास ही उस उतार मे पंहुचा कर छोड़ दिया है,जहाँ हर रोज आईने के सामने खड़ा एक विनीत खुद से वादा करता है कि आज जरूर जीतेगा,पर हर शाम एक पराजित इंसान मुह ढँक कर सो जाता है| ताकि अगले दिन फिर से अपने एक और पराजय की कहानी दोहरा सके| पर फिर भी इन बातों का कोई महत्व नहीं,क्योंकि यहाँ के लोगो का बौद्धिक स्तर मुझसे काफी ऊँचा है और शायद ज्यादा ऊंचाई पर खड़े लोगो को नीचे की हर चीज़ धुंधली दिखाती है,और शायद इतनी छोटी चीजों पर गौर करने के लिए ना तो उनके पास समय है और ना ही चाहत
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2 comments:

आशीष अंकुर said...

आपका ये आलेख अति संवेदनशील तथा मार्मिक है..
मेरे मित्र!
लगता है ये पंक्तिया आपने अपने जीवन की कुछ कटु अनभुवों को संग्रहीत कर लिखा होगा...
पर बीती कटु यादो को बस आने वाले समय के लिए संजो कर रखे...
उसे से प्रभावित ना हो...

आपका मित्र,
आशीष अंकुर

Dushyant Sharma said...

बंधू,
इस ब्लॉग से आपने मेरे मन को छू लिया, इसे पढ़ कर लगा की आपने मेरे मन की बात कह दी है| पर हकीकत ये है की ये आपकी या मेरी कहानी नहीं है, ये तो हर इन्सान की कहानी है| इन्सान कितनी भी सफलता पा ले हार का एहसास उसे हमेशा परेशान करता ही है| पर हकीकत ये है की जीत और हार एक सिक्के के दो पहलू हैं| जो भी आपने पाया है, जहां भी आप जीते हो, उन सब से आप ताकत लिजिए और उसी से हार का एहसास को हराइए| याद रखिए हार का बंधन थामे जीत भी कहीं पास ही है.