Monday, October 19, 2009

पत्थर में फूल खिलाता हूँ..............................

एक कविता जो मेरे विद्यालय जीवन में मेरे एक वरिष्ठ विद्यार्थी ने लिखी थी........................


आज पूर्णिमा की रात में भी,
आमवस्या सी क्यूँ छाई है?
देवों की इस स्वर्णिम धरा पर,
नरक सी क्यूँ बन आई है?

आसमान से गोले बरसे ,
दिक्-दिग्गंत सब काँप रहे हैं|
अब विनाश है अवश्यम्भावी,
सब प्राणी ये भांप रहे हैं|

ये रंग नहीं है पर्व का,
ना आज दिवाली होली है|
ये तो इंसानियत के खून से सनी,
हैवानियत की गोली है|

कितनो के पुत्र मरते है,
कितनो की मांग उजडती है|
कितनो की गोद सूनी है,
कितनी बहने भाई को खोती हैं|

देखो ये धरा चीत्कार रही,
अपने पुत्रों पे रोती है|
फिर भी दंगा-फसाद से यह,
नित दिन लाल होती है|

पर..पर पड़ोसी तू अभी कच्चा है,
एक छोटा नन्हा बच्चा है|
स्वार्थ हो क्यूँ भूल गया?
क्या बांग्लादेश की मात भूल गया?

कितने युद्ध छेड़े तुने,
कितने टेरेरिस्ट भेजे तुने|
पर तेरी हिमाकत तार तार हुई,
हर बार तेरी ही हार हुई|

भारत माता की जय बोल जिस दिन हम घुस जायेंगे|
तेरे हर कपूत को हम घर से घसीट कर लायेंगे|
चुन-चुन के हरेक को हम,बीच बाज़ार में मारेंगे|
सोच ले अपना हश्र,जब हम तेरी इज्जत उतारेंगे|


आतंक को बढा कर तुम,
क्या खुद साबुत बच पाओगे?
जिस दिन नज़र फेर देंगे,
सूली पे चढ़ जाओगे|

अरे हमारी शांति भंग कर,
क्या खुद चैन से सो जाओगे?
आर्याव्रत की गर्जना में,
चूर-चूर हो जाओगे|

हर बुराई का आखिर,
होता है अंजाम बुरा|
जिसने दिया आतंक का साथ,
भोंका उसने उसी को छूरा|

वक़्त रहते नवयुवकों,
थाम लो आकर मशाल|
बुला रहे है तुमको बापू,
भगत सुभाष जवाहरलाल|

आज तुम्हारी ही है जरूरत,
इसलिए तुमको बुलाता हूँ|
वक़्त के हर पहलू से मैं,
सबको सचेत कर जाता हूँ|

कोई सुने या ना सुने,
मैं गीत क्रांति का गाता हूँ|
भारत का रहने वाला हूँ,
पत्थर में फूल खिलाता हूँ|

2 comments:

108rahulr.me034 said...

pakistan tumhare dimaag par baitha hai.this country does not deserve our more attention.

Rahul Priyadarshi 'MISHRA' said...

badhiya hai.
kisne likha tha??
word verification hata do,comments dene me dikkat hoti hai.