आज पूर्णिमा की रात में भी,
आमवस्या सी क्यूँ छाई है?
देवों की इस स्वर्णिम धरा पर,
नरक सी क्यूँ बन आई है?
आसमान से गोले बरसे ,
दिक्-दिग्गंत सब काँप रहे हैं|
अब विनाश है अवश्यम्भावी,
सब प्राणी ये भांप रहे हैं|
ये रंग नहीं है पर्व का,
ना आज दिवाली होली है|
ये तो इंसानियत के खून से सनी,
हैवानियत की गोली है|
कितनो के पुत्र मरते है,
कितनो की मांग उजडती है|
कितनो की गोद सूनी है,
कितनी बहने भाई को खोती हैं|
देखो ये धरा चीत्कार रही,
अपने पुत्रों पे रोती है|
फिर भी दंगा-फसाद से यह,
नित दिन लाल होती है|
पर..पर पड़ोसी तू अभी कच्चा है,
एक छोटा नन्हा बच्चा है|
स्वार्थ हो क्यूँ भूल गया?
क्या बांग्लादेश की मात भूल गया?
कितने युद्ध छेड़े तुने,
कितने टेरेरिस्ट भेजे तुने|
पर तेरी हिमाकत तार तार हुई,
हर बार तेरी ही हार हुई|
भारत माता की जय बोल जिस दिन हम घुस जायेंगे|
तेरे हर कपूत को हम घर से घसीट कर लायेंगे|
चुन-चुन के हरेक को हम,बीच बाज़ार में मारेंगे|
सोच ले अपना हश्र,जब हम तेरी इज्जत उतारेंगे|
आतंक को बढा कर तुम,
क्या खुद साबुत बच पाओगे?
जिस दिन नज़र फेर देंगे,
सूली पे चढ़ जाओगे|
अरे हमारी शांति भंग कर,
क्या खुद चैन से सो जाओगे?
आर्याव्रत की गर्जना में,
चूर-चूर हो जाओगे|
हर बुराई का आखिर,
होता है अंजाम बुरा|
जिसने दिया आतंक का साथ,
भोंका उसने उसी को छूरा|
वक़्त रहते नवयुवकों,
थाम लो आकर मशाल|
बुला रहे है तुमको बापू,
भगत सुभाष जवाहरलाल|
आज तुम्हारी ही है जरूरत,
इसलिए तुमको बुलाता हूँ|
वक़्त के हर पहलू से मैं,
सबको सचेत कर जाता हूँ|
कोई सुने या ना सुने,
मैं गीत क्रांति का गाता हूँ|
भारत का रहने वाला हूँ,
पत्थर में फूल खिलाता हूँ|
2 comments:
pakistan tumhare dimaag par baitha hai.this country does not deserve our more attention.
badhiya hai.
kisne likha tha??
word verification hata do,comments dene me dikkat hoti hai.
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